मंगलवार, 5 नवंबर 2013

भारतीय खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्र

 खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्रक अर्थव्‍यवस्‍था के सम्‍पूर्ण विकास के लिए अपरिहार्य है क्‍योंकि यह कृषि को विविधीकृत करने और वाणि‍ज्‍यीकरण करने में सहायता करता है। यह कृषकों की आय बढ़ाकर कृषि खाद्य के निर्यात के लिए बाजार का सृजन करके अधिकाधिक रोजगार के अवसरों का सृजन करता है। ऐसे उद्योगों की मौजूदगी के द्वारा विस्‍तृत पैमाने पर खाद्य उत्‍पाद दूरस्‍थ स्‍थानों पर बेचा और वितरित किया जाता है। 'खाद्य प्रसंस्‍करण' विभिन्‍न प्रविधियों जैसे ग्रेडिंग, छटनी और पैकेजिंग द्वारा कृषि या बागवानी उत्‍पादो के स्‍वजीवन को बढ़ाने, गुणवत्ता में सुधार लाने तथा कार्यात्‍मक रूप से उन्‍हें अधिक उपयोगी बनाकर प्रभावी तरीके से विनिर्माण और संरक्षण की तकनीक है । इसमें उप-क्षेत्रकों में कृषि, बागवानी, बागान, पशु पालन और मत्स्यिकी शामिल हैं।

          भारतीय खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग उत्‍पादन, खपत, निर्यात और‍ विकास संभावना की दृष्टि से विश्‍व में सबसे बड़ा उद्योग है। पारंपरिक खाद्य प्रसंस्‍करण मोटे तौर पर खाद्य संरक्षण, पैकेजिंग और परिवहन तक ही सीमित था जिसमें मुख्‍य रूप से नमकीन करना, दही जमाना, सूखाना, अचार बनाना आदि शामिल हैं। तथापि, वर्तमान में नए बाजारों और प्रौद्योगिकियों के आने से क्षेत्रक ने अपने क्षेत्र का विस्‍तार करके नए मदों का उत्‍पादन करना आरंभ कर दिया है जैसे खाने के लिए तैयार खाद्य, पेय, प्रसंस्‍करण और जमे हुए फल और स‍ब्‍जी उत्‍पाद, समुद्री उत्‍पाद और मांस उत्‍पाद आदि। साथ ही इसने विभिन्‍न खाद्य मदों के प्रसंस्‍करण के लिए कटाई पश्‍च मूल संरचना प्रतिष्‍ठानों को भी शामिल किया है, जैसे शीतल भंडारण सुविधाएं, फूड पार्क, पैकेजिंग केन्‍द्र, मूल्‍यवर्धित केन्‍द्र, विकिरण सुविधाएं और आधुनिकीकृत कसाईखाना।

  उदारीकरण ने इस क्षेत्र में विविधिकरण और विकास के नए मार्ग खोल दिए हैं। शहरीकरण, जीवन शैली में बदलाव के कारण प्रसंस्‍कृत और सुविधाजनक खाद्य की मांग बढ़ रही है। तदनुसार नए उच्‍च गुणवत्ता वाले खाद्य उत्‍पादो का निर्माण अत्‍याधुनिक प्रौद्योगिकी द्वारा किया जा रहा है।

  भारत में 184 मिलियन हेक्‍टेयर कृषि योग्‍य भूमि का सुदृढ़ कृषि उत्‍पादन आधार है। यह विश्‍व में सबसे बड़ा खाद्य उत्‍पादक है और यहां व्‍यापक किस्‍म की फसलें, फल, सब्‍जी, फूल, मवेशी और समुद्री खाद्य की उपलब्‍धता है। उपलब्‍ध सूचना के अनुसार यह वार्षिक रूप से 90 मिलियन टन दूध का उत्‍पादन करता है (यह विश्‍व में सबसे अधिक है) 150 मिलियन टन फल और सब्जियां (दूसरा सबसे बड़ा) 485 मिलियन मवेशी (सबसे बड़ा); 204 मिलियन टन खाद्यान्‍न (तीसरा सबसे बड़ा); 6.3 मिलियन टन मछली (तीसरा सबसे बड़ा); 489 मिलियन कुक्‍कुट और 45,200 मिलियन अण्‍डे। परिणामस्‍वरूप भारतीय खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग वैश्विक निवेशकों के आकर्षण का केन्‍द्र बन गया है। वर्ष 2000-01 से 2007-08 (नवम्‍बर 2007 तक) की अवधि में खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्र में 2700 करोङ रु. का प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) हुआ है।

'खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग मंत्रालय' देश में सुदृढ़ और ऊर्जावान प्रसंस्‍करण के विकास के लिए नोडल एजेंसी है। यह क्षमता विकास हेतु उद्योग को तकनीकी सुझाव और मार्गदर्शन देने तथा विकास हेतु अनुकूल माहौल बनाने, घरेलू और विदेशी निवेश आकर्षित करने हेतु सुविधाकारक का कार्य करता है। मंत्रालय के उद्देश्‍य निम्‍नलिखित हैं :-
  • मूल्‍यवर्धन, अवसंरचना निर्माण 
  • खाद्य प्रसंस्‍करण श्रृंखला में सभी अवस्‍थाओं में बर्बादी कम करना।
  • आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयो
  • प्रसंस्‍कृत उद्योग के अपशिष्‍ट और कृषि अवशेषों को सक्षमता पूर्वक उपयोग करना।
  • खाद्य प्रसंस्‍करण में अनुसंधान और विकास को प्रोत्‍साहित करना।
  • निर्यात सवर्धन हेतु नीतिगत सहायता, संवर्धनात्‍मक पहलों और भौतिक सुविधाएं प्रदान करना।
  • संबंधित प्रशुल्‍क और शुल्‍कों के यौक्तिकरण करना।
  • खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में सभी अंतरालों को भरने के‍ लिए महत्‍वपूर्ण अवसंरचना स़ृजन
सरकार ने विभिन्‍न खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्रों में अनेकानेक राजकोषीय राहत और प्रोत्‍साहन प्रदान करते हुए बड़ी संख्‍या में संयुक्‍त उद्यमों, विदेशी सहयोग, औद्योगिक लाइसेंस एवं 100 प्रतिशत निर्यातोन्‍मुखी यूनिट प्रस्‍तावों का अनुमोदन किया है। खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योगों को बैंकों द्वारा उधार देने के लिए प्राथमिकता क्षेत्रक की सूची में शामिल किया गया है ताकि उनके लिए सरलता से ऋण की उपलब्‍धता सुनिश्चित किया जा सके। 100 प्रतिशत तक विदेशी इक्विटी के लिए स्‍वत: अनुमोदन अधिकांश प्रसंस्‍कृत खाद्य मदों के लिए उपलब्‍ध है (कुछ शर्तों के अधीन)

   खाद्य प्रसंस्‍करण उद्यम को निम्नलिखित कानूनी अपेक्षाओं का अनुपालन करना है:- 
  • फल उत्‍पाद आदेश (एफपीओ), 1955 - यह फल और सब्‍जी उत्‍पादों के विनिर्माण में साफ-सफाई और स्‍वच्‍छता के विनियमन की व्‍यवस्‍था करता है। इसका लक्ष्‍य यह सुनिश्चित करना है कि स्‍वच्‍छ और अच्‍छी गुणवत्ता की मदों का विनिर्माण और विक्रय किया जाए। 
  • मांस खाद्य उत्‍पाद आदेश (एमएफपीओ), 1973 - यह प्रसंस्‍करण से तैयार उत्‍पाद तक मांस पशु को मारने के पहले और मारने के पश्‍चात निरीक्षण करके मांस खाद्य उत्‍पादन का गुणवत्ता नियंत्रण का कार्य करता है ताकि मांस खाद्य उत्‍पादों के प्रसंस्‍करण की स्‍वच्‍छता स्थिति सुनिश्चित किया जा सके। साफ सफाई, स्‍वच्‍छता, पैकिंग, मार्किंग और लेबलिंग अपेक्षाएं आदेश की अलग सूची में विनिर्दिष्‍ट हैं।
  • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (एकीकृत खाद्य कानून) को निम्‍नलिखित के निमित अधिनियमित किया गया है :-

    1. खाद्य संबंधी कानूनों को समेकित करना
    2. खाद्य सामग्री के लिए विज्ञान आधारित मानक रखने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण स्‍थापित करना
    3. मानव उपभोग के लिए खाद्य मदों की सुरक्षित और पूर्ण रूप से खाद्य की उपलब्‍धता सुनिश्चित करने की दृष्टि से विनिर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को विनियमित करना और
    4. बेहतर मानक निर्धारण और नियमित पुन: तैनाती द्वारा प्रवर्तन के लिए मूल संरचना, जनशक्ति और परीक्षण सुविधाएं।
    अधिनियम का लक्ष्‍य उत्‍पादित, प्रसंसाधित, बेचे या आयात किए गए खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और सुरक्षा में उपभोक्‍ता का विश्‍वास बढ़ाना है। यह नियमों और मानक स्‍थापित करने एवं इन्‍हें लागू करने वाले अभिकरणों की बहुगुणकता की समस्‍या से निपटने के लिए हैं।
ऐसे प्रोत्‍साहनों और उपायों के परिणामस्‍वरूप उद्योग ने इसके अधिकांश खंडों में तेजी से विकास किया है। कुछ उप-क्षेत्रकों की वृद्धि और विकास को निम्‍नानुसार स्‍पष्‍ट किया जा सकता है।:-
  • फल एवं सब्जी प्रसंस्‍करण क्षेत्र की संस्‍थापित क्षमता 1 जनवरी 2008 को 26.80 लाख टन हो गई है। प्रसंस्‍करण के लिए फल और सब्जियों की उपयोगिता कुल उत्‍पादन का 2.20 प्रतिशत अनुमानित है। विगत कुछ वर्षों की तुलना में खाने के लिए तैयार खाद्य और जमा हुआ फल एवं सब्‍जी उत्‍पादों, टमाटर उत्‍पादों, अचार, सुविधाजनक सब्‍जी मसाले पेस्‍ट, प्रसंस्‍कृत मशरूम और करीदार सब्जियों में सकारात्‍मक वृद्धि हुई है।
  • भारत में मुर्गी का मांस तेजी से बढ़ता पशु आधारित प्रोटीन है। जिसमें वर्ष 1991-2005 के दौरान 13 प्रतिशत की से 1500 हजार टन की अनुमानित वृद्धि हो रही है। भारत 500,000 मेट्रिक टन से अधिक मांस का निर्यात करता है जिसमें भैंस के मांस की इसकी नम्‍य विशेषता और ऑर्गनिक प्रकृति के कारण अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में मांग है तथा इसके निर्यातों में उल्‍लेखनीय वृद्धि की क्षमता है। भारत विश्‍व में गोजातीय मांस का पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक है। तथापि, बाजार के लिए मांस और मांस खाद्य उत्‍पादों की प्रसंस्‍करण के लिए अवसंरचना विकास हेतु मंत्रालय अनुदान प्रदान कर रहा है।
  • भारत का दुग्‍ध उत्‍पादन की दृष्टि से विश्‍व में पहला स्थान है। लगभग 70 मिलियन ग्रामीण घर देश में 90 मिलियन दुग्‍ध उत्‍पादन कर रहे है जो 4 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। यह मुख्‍य रूप से दुग्‍ध उत्‍पादकों का स‍हकारी संगठन, दुग्‍ध प्राप्ति हेतु अवसंरचना निर्माण, प्रसंस्‍करण और विपणन में ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम द्वारा की पहलों तथा डेरी क्षेत्र को कृषि मंत्रालय और खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग मंत्रालय द्वारा वित्तीय, तकनीकी सहायता एवं प्रबंधन के कारण है। भारत में उत्‍पादित लगभग 35 प्रतिशत दुग्‍ध प्रसंस्‍कृत होता है। (संगठित क्षेत्रक (बड़े डेरी संयंत्र) वार्षिक रूप से लगभग 13 मिलियन टन का प्रसंस्‍करण करता है, जबकि असंगठित क्षेत्रक लगभग 22 मिलियन टन का प्रसंस्‍करण प्रतिवर्ष करता है।
  • 8129 किमी तट रेखा, महाद्वीप शेल्‍फ क्षेत्रफल के 50600 वर्ग किलोमीटर, विशिष्‍ट आर्थिक क्षेत्र के दो मिलियन वर्ग किलोमीटर और ब्रेकिश जल निकाय के 1.2 मिलियन हेक्‍टेयर से सम्‍पन्‍न भारत में एक समृद्ध मत्‍स्‍य संसाधन उपलब्‍ध है। समुद्री उत्‍पादों के प्रसंस्‍करण के लिए अवसंरचना का निर्माण किया गया हे। वर्तमान में 369 से भी अधिक फ्रीजिंग यूनिट हैं जिनकी प्रतिदिन की प्रसं‍स्‍करण क्षमता 10266 टन है जिसमें से 150 यूनिट ईयू को निर्यात करने के‍ लिए अनुमोदित हैं। 499 यूनिट फ्रोजन मत्‍स्‍य के उत्‍पादन में लगे हुए हैं जिनकी कुल भंडारण क्षमता 134767 टन है।
  • भारत अनाज उत्पादन में आत्म निर्भर है। मिलिंग क्षेत्र के लिए मंत्रालय द्वारा अनुदान के रूप में इनके विस्‍तार और आधुनिकीकरण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। भारत विश्‍व में तेल / वनस्‍‍पति उत्‍पादों के प्रमुख उत्‍पादकों में है, जहां लगभग 15,000 तेल मिले, 600 विलायक निष्‍कर्षण इकाइयां और 250 वनस्‍पति इकाइयां हैं। भारतीय तिलहन क्षेत्र में 70,000 करोड़ रु. का घरेलू कारोबार और 16,000 करोड़ रु. का आयात / निर्यात करोबार है। भारत विश्‍व में वनस्‍पति तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक भी है, जिसका स्‍थान यूरोपीय संघ और चीन के बाद आता है।
  • उपभोक्‍ता खाद्य उद्योग में पास्‍ता, ब्रेड, केक, पेस्‍ट्री, रस्‍क, बन, रोल, नूडल्‍स, कॉर्नफ्लेक्‍स, चावल के फ्लेक्‍स, खाने के लिए तैयार और पकाने के लिए तैयार उत्‍पाद, बिस्‍किट आदि शामिल हैं। ब्रेड तथा बिस्‍किट उद्योगों से संबंधित 93 खाद्य प्रसंस्‍करण इकाइयों को वित्तीय सहायता प्रदान की गई।
  • भारत दुनिया में एल्‍कोहलिक पेय पदार्थों का सबसे बड़ा बाजार है। स्प्रिट और बियर की मांग लगभग 512 मिलियन केस के आस पास होती है। भारत में शराब का उद्योग मूल्‍यवर्धन तथा कृषि प्रसंस्‍करण क्षेत्र में रोजगार उत्‍पादन का अच्‍छा अवसर प्रदान करता है।
खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग मंत्रालय ने खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योगों की वृद्धि हेतु संकल्‍पना 2015 के विषय में दस्‍तावेज को अंतिम रूप दिया है, जिसे ''कृषि व्‍यापार के प्रोत्‍साहन हेतु समेकित कार्यनीति और खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्र के लिए संकल्‍पना, कार्यनीति और कार्य योजना'' के नाम से जाना जाता है इस कार्य नीति का उद्देश्‍य खराब होने योग्‍य खाद्य पदार्थों के प्रसंस्‍करण का स्‍तर वर्ष 2015 तक 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करना, मूल्‍यवर्धन 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 35 प्रतिशत करना और वैश्विक खाद्य व्‍यापार को 1.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 3 प्रतिशत तक करना है। फल और सब्जी के लिए प्रसंस्‍करण का स्‍तर क्रमश: 2010 और 2015 तक 2.2 प्रतिशत से बढ़ कर 10 प्रतिशत और 15 प्रतिशत कराना है। कार्यनीतिक हस्‍तक्षेप का उद्देश्‍य खाद्य समूहों का विस्‍तृत मानचित्रण, बागवानी / मांस / डेयरी / समुदी क्षेत्र में मेगा फूड पार्क स्‍थापना, आपूर्ति श्रृंखला के साथ शीत श्रृंखला प्रक्रिया विकास और अग्रगामी तथा पश्‍चगामी सहसंबंधों को सुदृढ़ बनाना, बूचड़खाना आधुनिकीकरण, संगठित खाद्य खुदरा बाजार हेतु अवसंरचना विकास, युक्ति संगत कर संरचना आदि तैयार करना है।
           इन सभी प्रयासों ने उद्योग को वैश्विक मंच पर प्रतिस्‍पर्द्धी दौड़ में शामिल किया है। अधिकाधिक लोग मूल्‍यवर्धित उत्‍पादों का उपभोग कर रहे हैं। बढते निर्यात अवसरों से कृषि उपज बढ़ाने, उत्‍पादकता बढ़ाने, रोजगार सृजित करने तथा देश भर में बड़ी संख्‍या में लोगों का जीवन स्‍तर ऊपर उठाया जा सकता है।

   परन्‍तु अधिक पैकिंग लागत, ताजा खाद्य के लिए लोगों की सांस्‍कृतिक अधिमान, कच्‍ची सामग्रियों का सिर्फ मौसमी उपलब्‍धता, पर्याप्‍त अवसंरचनात्‍मक सुविधाओं का अभाव के कारण क्षेत्र का अभी तक दोहन नहीं हो सका है। इसकी क्षमता को बढ़ाकर, अधिक प्रोत्‍साहन प्रदान करके तथा अधिक निवेश और निर्यातों के‍ लिए अनुकूल माहौल बनाने के द्वारा क्षेत्रक को विविधिकृत करने की आवश्‍यकता है।